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Krishna Bansal

Fantasy Inspirational

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Krishna Bansal

Fantasy Inspirational

गुलमोहर

गुलमोहर

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चैत्र माह

बसंत का आगमन 

एक बार फिर खिल उठा 

मेरे आंगन का गुलमोहर।


दो महीने से 

ठूंठ सा खड़ा 

पत्ता विहीन गुलमोहर 

अब खुशियां उसके रोम रोम से फूल बन कर लटक रही हैं, 

गुच्छे ही गुच्छे। 

लाल रंग के फूल 

चारों और अपनी आभा बिखेरते सुगंधि से भरपूर।


उनकी छटा देखते ही बनती थी।


गुलमोहर पर कूकती कोयल 

कूदती फांदती गिलहरी

विशेष सुगंधि से 

महकता पूरा वातावरण 

पूरा घर।


मन में विचार उठा 

हम क्यों नहीं बन सकते 

गुलमोहर

हम क्यों नहीं 

इसी तरह खिल सकते 

जीवन के सभी कष्टों को हंसी खुशी से सहते हुए। 


कम से कम साल में एक बार

अपनी नकारात्मकता को त्याग प्रसन्न क्यों नहीं हो जाते।


मुझे याद है जब यह 

छोटा सा पौधा था 

अनेकों बार इसे 

जानवरों ने खाया 

बारिश और आंधी ने गिराया 

गर्मी में पानी को तरसा

पौष माघ की सर्दी में ठिठुरता

बसंत आते ही यह फिर 

हरा भरा हो जाता

नये सिरे से फिर तरोताज़ा दिखने लगता।


यह तो एक साधारण सा वृक्ष है

हमें तो विवेक बुद्धि मिली है

ऊर्जा और शक्ति मिली है।

क्यों न हम भी गुलमोहर की तरह

एक बार फिर तरोताज़ा हो जाएं


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