एक कविता तुम पर !
एक कविता तुम पर !
काश मैं लिख पाता
एक कविता तुम पर
तुम्हारी लाज शर्मो हया पर
तेरी मीठी मीठी बातों पर
जो कानों में मिश्री सा रस घोल देती है
फिजा में रंगीनियत भर देती है।
तुम्हारी हर अदा पर
तुम्हारे गुलाबी होंठों पर
जिसे देख मेरी सांसें थमने लगती है
तेरे चेहरे पर नजर जमने लगती हैं।।
तेरी हर शोखियों पर
चेहरे से टपकती बूंदों पर
जो मोतियों से झरझर बहने लगते हैं
अपनी एक कहानी कहने लगते हैं।
तेरे चंचल चितवन नैनों पर
तेरे गले में पहने गहनों पर
जो तेरे सामने फीके लगते हैं
तुझसे बातें करने लगते हैं।।
तेरे कानों की बालियों पर
सुर्ख लाल गुलाबी गालों पर
जिस पर मैं दिल हार जाता हूं
तेरा बस तेरा हो जाता हूं।
तेरी हिरनी जैसी चाल पर
लहराते घने बालों पर
जो तेरी हर अदा पर मस्त झूमने लगते हैं
मुझे इशारे करने लगते हैं।।
तेरे मखमली बदन पर
तेरे सुराही जैसी गर्दन पर
जो लोच पैदा होती है बिजलियां गिराती है
कयामत सा ढा देती है ।
तेरी छुअन पर
तेरे मदमस्त यौवन पर
जिसकी बात ही निराली है
आशिकों को हरदम जलाने वाली है।।
