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Subhrakanta Mishra

Abstract Fantasy

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Subhrakanta Mishra

Abstract Fantasy

कमबख़्त ज़िन्दगी

कमबख़्त ज़िन्दगी

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होश में रहना होशियारी होती हे....

ज़िन्दगी कमबख़्त बहुत भारी होती हे...

सुकून ढूँढता हूँ मैं सुबह शाम...

रत्ती भर का दिलासा दिल पे भारी हे....


मेरे यह मेरा वह सब बोलते हे यहाँ...

किसे पता साझेदारी कब तक रहने वाली हे...

असली ख़ुशी की तलाश कौन करता हे यहाँ...

सब झूठ के प्याले में जाम सजाने वाले हे...


कभी दिल से कोई पूछता है की तुझे क्या चाहिए..

राहों में ख़ुशी का मंजर गुलज़ार चाहिए ???

सब वाक़िफ़ हैं दुनिया के तौर तरीकों से...

फिर भी असली सुख के लिए दौलत पैसा चाहिए ????


ज़िन्दगी की पतंग आसमान में डुबकी लगाती है ...

प्यार की डोर से रूह को धड़कन से जोड़ती है ...

अब समझ लो आसमान बुला रहा है हमें ...

उसके दर पे ज़िन्दगी क्या हे सीखना चाहिए.....



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