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Subhrakanta Mishra

Romance Fantasy

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Subhrakanta Mishra

Romance Fantasy

बस कुछ हे तुझमें

बस कुछ हे तुझमें

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प्यार करता हूँ कहना सही नहीं लगता है...

हमसफ़र हो तुम कहना भी फीका लगता है...

क्या राज़ है यह मैं समझ ही ना पाया हूँ...

बस कुछ है तुझमें जो और किसी में नहीं है...


नज़्म लिखूं या ग़ज़ल या शायरी तेरे लिए..

कविता लिखूं या गीत गुनगुनाऊँ तेरे लिए....

कुछ ऐसी सरगम तू बन गयी है मेरे लिए...

बस कुछ है तुझमें जो और किसी में नहीं है....


तुझे पास में देखकर मुस्कुरा लेता हूँ ..

तू ना दिखे कभी तो नम बन जाता हूँ...

तुझसे बिछड़ने का डर बहुत है मुझे...

बस कुछ है तुझमें जो और किसी में नहीं है....


बादल अपने महबूब धरती की और बरसता है...

सूरज ना हो तो रौशनी भी जुगनुओं को ढूंढती है....

जैसे राँझा हूँ मोहब्बत में तेरे, तू मेरी हीर बन गयी है

बस कुछ है तुझमें जो और किसी में नहीं है......



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