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Santosh Jha

Romance

4  

Santosh Jha

Romance

चलो एक शाम किसी कॉफ़ी पर मिलते है

चलो एक शाम किसी कॉफ़ी पर मिलते है

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चलो एक शाम किसी कॉफ़ी पर मिलते हैं

वही तुम्हरी पसंद कि जगह पर

एक बार चलो फिर से मिलते हैं

बैठेंगे इत्मीनान से कुछ वक़्त

पर इस बार ज्यादा बात नहीं करेंगे

बस उस समय उस वक़्त को आहिस्ते आहिस्ते समेटेंगे

चलो तुम बात कर लेना मैं तो बस तुम्हे देखते रह जाना चाहता हूँ

ठण्डी ठंडी हवाओ में तुम्हरे भिखरे बालों कही लहराते 

कभी तुम्हे उसे समेटे देखना चाहता हूँ

उफ्फ कितना सुकून है ये सब बस सोच लेने में भी

चलो इस बार कुछ नया करेंगे

कोई पुरानी बातें नहीं कोई पुराने किस्से नहीं

चालो इस बार पुरानी यादों को दूर कही छोड़ आते है

चलो न इस बार फिर से अजनबियों की तरह मिलते है

कोई कसक नहीं चेहरे पर कोई सिकन नहीं

ना कोई शिकायत ना कोई अफ़सोस

बस एक अच्छे कल की उम्मीद के साथ मिलते हुये

वैसे तो ये मुमकिन नहीं अब रास्ते अलग है मंजिले अलग है

और वैसे भी हम कौन सा मिल रहे है है तो ये सब एक कल्पना ही न 

और तो फिर कल्पना के पर क्यों कतरना पंची उड़ना चाहता है 

उसे पकड़ कर क्यों बाँधना उफ देखो कहा से कहा आगये हम तो 

चलो इस बार हम फिर अजनबियों की तरह मिलेंगे

फिर से सवालो का सिलसिला होगा

वही कॉफ़ी होगी वही बेंच के दो हिस्सों पर बैठे होंगे हम

फिर से नए सिरे से सरोकार होगा 

फिर से वही सब पूछेंगे जैसे कि पसंदीदा रंग, घूमने की जगह, खाना

कितना फनी है न , एक समय में जो सवालात कितने जरुरी लगते है हमे

वहि सवालात कुछ समय बाद कितने फनी साउंड करते है

सुरज की ढलती रौशनी के साथ फिर से वही पुरानी चीज दोहरांगे

सोररी सॉरी मैंने कहा था की मैं कुछ नहीं कहूँगा इस बार बस तुम कहोगी 

और मैं सिर्फ बैठा रहूँगा और बस तुम्हे इत्मीनान से सुनता रहूँगा

अरे ये बताना भूल गया में

एक नयी किताब पढ़ी मैंने अंतिमा और जैसे ही उसका प्रोटैग्निस्ट आया

 हूबहू वो तुम ही थी मैं सच बोल रहा यकीन करो मेरा

 वो तुम ही थी उसकी एक एक बात उसकी एक एक झलक में तुम थी

 उस किताब को मैंने 3 बार पढ़ा एक बार शायद फिर जाकर पढूं एक बार 

 किताब का अंत और हमरे अंत में कितना फर्क है ना

 में अक्सर सोचता हु किताबों और कहानिओ के अंत और जाती ज़िंदगी के अंत में इतना फर्क क्यों होता है

 या फिर ये सिर्फ हमारी किस्मत ही थी जो हमारा अंत ऐसा हुआ

 खेर अब यु हसो न ये न कहो की मैं तुम्हे हर किताब के फव करैक्टर में कैसे देख लेता हूँ

 कैसे मैं उसके अच्छे करैक्टर या फिर उसकी अच्छाइयों में तुम्हे देख लेता हूँ

 और उसी करैक्टर की बुराइओं को ऐसे इग्नोर करता हु जैसे माँ अपनी बच्चों के सारी गलतिया ढक लेती हे

 तुमने क्यों पढ़ें छोड़ दिया तुम्हे भी तो बहुत पसंद थी न किताबें 

 याद है कैसे अक्सर हम किताबें साथ में शुरु किया करते थे

 हलाकि कभी उसे साथ ख़तम नहीं कर पाए हमेशा मैं ही पहले ख़तम कर देता था

 तुम अक्सर कहा करती थी की तुम्हे जल्दी बहुत रहती है सब कुछ बस खत्म कर जाने की बस तुम खत्म कर लेना चाहते हो हर चीज

 जाने कहा जाना है किसी चीज के खत्म होने में ऐसी क्या ख़ुशी मिलती है उस चीज को उस समय को उस कहानी के साथ जुड़ने के बजाये बस ख़तम कर लेना चाहते हो

 सही कहा था तुमने सब बस मैं ख़तम कर लेना चाहता हूँ बस उस समय से उस दुविधा से मैं बस निकल जाना चाहता हु जल्दी से जल्दी

 और देखो अब कोई दुविधा नहीं है और अब तुम भी नहीं हो

 चलो अब काफी शाम हो गयी है चलते है काफी देर के सन्नाटे के बाद उसने धीरे से कहा 

और फिर हम दोनों अपने अपने रास्तों की तरफ निकल पड़े।


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