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Santosh Jha

Others

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Santosh Jha

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गुमनामी

गुमनामी

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जला देना चाहता हूं मैं 

सारे सपने सारे अरमान 

जो भुलाये न जा सके वो सारे अपमान 

बस जला देना चाहता हूं 

भीड़ में जाकर गुम हो जाना चाहता हूँ 

खो देना चाहता हूं, अपनी पहचान अपना नाम 

और बन जाना चाहता हूँ, बस भीड़ का एक चेहरा 

जिस चेहरे का कोई नाम हो, जिसकी कोई पहचान न हो 

बस हो एक चेहरा भीड़ का 

जिस चेहरे से न लगा हो 

किसी नाम का तमगा न हो, किसी जिम्मेदारी का भोझ 

न हो लोगो को कोई आकांक्षा, 

न ही हो उसको खुद से भी कोई उम्मीद 

बस हो एक गुमनाम चेहरा

जहा उम्मीद हो तो बस एक

उस चेहरे पर नयी कहानिया गढ़ने की 

कहानिया जिसपर अतीत का भोझ न हो 

न भविश्वा को लेकर कोई आकांक्षाएं 

जिसे गलती करने की आज़ादी तो मिले 

पर उन गलतियों को सुधार करने की छूट भी 

जो

न दबा हो घर समाज की मर्यादों से 

बस वो अकेला खड़ा हो भीड़ में 

बस एक उम्मीद हो खुद को सवारने का 

किसी और के लिए नहीं बस खुद के लिए 

फिर चाहे वो निखर कर निकले या बिगड़ कर बर्बाद हो जाये 

जो भी वो उस अकेले आदमी के साथ हो 

बस उस जिम्मेदारी से मुक्त होकर 

या फिर इस निखारने और बिगड़ने की जंग से 

दूर कर खुद को, बस भीड़ में खो जाये कही 

और किसी को न मिले फिर कभी 

बस एक गुमनाम चेहरा 

जो भीड़ में बस दिखाई तो दे

पर उसकी कोई पहचान ही न हो कोई 

बस एक भीड़ का हिस्सा हो 

जब तक जिए हफ्ते महीने या साल 

न कोई उसे ढूंढे न कोई उसे अपना कहे 

बस शायद उसी भीड़ का हिस्सा बन जाना चाहता हु 

फिर से सब कुछ को जलाकर 

सब कुछ को मिटा कर गुमनामी के दौर में 

गुमनामी को अपना बनाकर।


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