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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

आखिरी किताब

आखिरी किताब

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मेरी जिंदगी की पहली और आखिरी किताब हो तुम 

कविता की तरह रग रग से टपकती हुई शराब हो तुम 

कल्पनाओं की उड़ान शब्दों का समंदर छंदों की प्रेरणा 

जीवन को महकाने वाली गजल रूपी गुलाब हो तुम 

अलंकार की जननी हो फसाना या एक ख्वाब हो तुम 

कवि की कलम से बना वो मचलता हुआ शबाब हो तुम 

तुम्ही हर प्रश्न हो और हर प्रश्न का भी जवाब हो तुम 

पढकर जिसे दिल ना भरे वो श्रंगार रस बेहिसाब हो तुम 

कालिदास की शाकुन्तलम सी सौन्दर्या नायाब हो तुम 

किसी शायर की रुबाई सी एक नज्म लाजवाब हो तुम।



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