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ritesh deo

Abstract Romance

4  

ritesh deo

Abstract Romance

प्रेम और तुम

प्रेम और तुम

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मैं प्रेम में था, बेसुध था⁣

वो सचेत थी, वो पूरे होश में रहकर ⁣

देख रही थी मुझे प्रेम में डूबते हुए⁣

सड़क पार करते वक़्त ⁣

मैं बस उसे देख रहा था⁣

और वो मेरा हाथ थामे ,आने-जाने वाले साधनों ⁣

और लोगों की नजर से बचाती हुई⁣

ले जा रही थी जैसे – सही और गलत के पार ⁣

किसी और दुनिया में⁣

हम भाग सकते थे, कर सकते थे विद्रोह⁣

मगर हमने चुना नहीं,स्वीकार किया⁣

जिम्मेदारियां निभाते हुए जिया प्रेम,⁣

जो प्रेम उगा था भीतर⁣

हमनें उसे बांटा दुनिया के साथ⁣

जीवन के तेज बहाव में⁣

कल्पनाएँ बह सकती थी स्मृतियाँ नहीं,⁣

हमनें पाने से ज़्यादा ⁣

ख़ुद को एक-दूसरे में खोना स्वीकार किया⁣

हमने प्रेम में ईश्वर को नहीं खोजा⁣

बस एक-दूजे का नाम लिया⁣

और हमारे हिस्से का ईश्वर मुस्कुराने लगा।


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