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Sudershan kumar sharma

Romance

4  

Sudershan kumar sharma

Romance

खामोशियाँ

खामोशियाँ

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251


खामोशियाँ क्यों छायी रहीं रात देर तक,

बात होठों पर क्यों आती रही रात देर तक। 


याद आए वो और भूल भी गए एक ही पल में, 

मगर हिचकियाँ क्यों याद दिलाती रहीं रात भर। 


चुपचाप खड़ी थी परछाई उनकी सामने,

हमारे उठने पर  क्यों भागती रही रात भर। 


ऩहीं खत्म हो रही थी घौर अंधेरी लम्बी रात,

पर उनकी रूह की रोशनी क्यों जलती रही रात भर। 


आंखे छलकती रहीं बरसात बनकर,

हम तन्हाई के समुन्द्र में क्यों गोते खाते रहे रात भर। 


पुराने जख्म भी हरे हो गये कुरेद कुरेद कर,

पर वो यादों के मरहम क्यों लगाते रहे रात भर। 


कुछ पल के लिए ही बैठ जाते हमारे संग,

पर वो क्यों महफिल सजाते  दिखते रहे  रात भर। 


न उम्मीद टूटी न सपना सुदर्शन,

याद  उनकी क्यों आती रहती है रात भर। 


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