कुछ बातें यूँही.
कुछ बातें यूँही.
कुछ बातें कह नहीं सकते......
दिल से निकली हुयी प्यार बता नहीं सकते...
रोज़ मन्नत मांगते हैं हम तो...
पर मन्नत क्या हे जता नहीं सकते....
सब सामने होने पर भी अनजान रहते...
नींद से ख्वाब के फासले जान नहीं सकते..
होठों पे यह मुस्कान क्यों हे मेरे...
बात समझ के भी इज़हार कर नहीं सकते....
साख से सजर का रिश्ता भुला नहीं सकते...
अंदाज़ से हुनर का वास्ता छुपा नहीं सकते..
आसान लगता हे बोलना कुछ भी यहाँ...
पर बातों को हक़ीक़त बना नहीं सकते....
छाँव है तो धूप के मज़ा ले सकते...
ज़िन्दगी हे तो राहें बना भी सकते....
कोशिश में ज़माने को भी , मेरे खुदा..
बातों बातों में उलझा कर रख सकते....