सूर्यास्त की आभा
सूर्यास्त की आभा
शिमला का सफ़र बहुत ही रोमांच भरा था
कदम पहुँच गए काली टिब्बा मंदिर तकI
घंटियाँ मंदिर की बज कर रही थी घोषणा,
पुण्य –पूजा का समय, हो रही थी देव अर्चना I
जहाँ शाम की दहलीज पर मंद- मंद हवा बह रही थी,
देखने रोमांच संध्या का लोगों का हुजूम लगा था I
अद्भुत दृश्य देख आज यहाँ मन हो आया बैठ जाने का,
वो अद्भुत रमणीय पल दूर न हो जाए आँखों से कहीं I
सोचा थाम लूँ अपनी हथेलियों में इस आभा को,
नदियों संग सूर्यास्त की आभा ऐसी लग रही थी I
जैसे सुंदर दुल्हन सेज पर शरमा रही हो,
मानो आँचल में अपना चेहरा छुपा रही हो I
और ये आभा धीमी- धीमी गति से विलीन हो रही थी
मेरी हथेलियों से निकलकर पर्वतों की गोद में समां रही थी I
कहीं ओझल ना हो जाए मेरी नजरों से यह आभा
जी कर रहा था थाम लूँ इनको अपनी हथेली पर I
