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Phool Singh

Abstract Fantasy Others

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Phool Singh

Abstract Fantasy Others

कुर्सी- एक जादुई छडी़

कुर्सी- एक जादुई छडी़

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त्याग, बलिदान, जोश, श्रम

चार पांवों पर खड़ी हूँ मैं

सत्ता की मैं बन धुरी

चमक-धमक से सजी-धजी

जादू की फुलझड़ी हूँ मैं

सपनों की सुंदर परी हूँ।।


महत्वाकांक्षा की कड़ी हूँ मैं

स्वागत को तेरे खड़ी हूँ मैं

धैर्य की सबकी परीक्षा लेती

कर्म मार्ग की लड़ी हूँ मैं

नियत, मेहनत का मूल्यांकन करती

तेरे सुख-दुःख की कड़ी हूँ मैं।।


उठक-बैठक कर खेल दिखा

कभी किसी को मौज कराती

कभी प्रशंसा के बोल सुना

सभी से काम कराती

अपना प्रभाव मैं दिखा

अहं को सबके धूल मिलाती

पूर्ण स्वार्थ से भरी हूँ मैं ।।


कभी बन मैं राज सिंहासन

राजाओं की सभा बढ़ाती

कभी किसी की तकदीर बना

रंक से राजा, उसे बनाती

आत्म संयम बन सके जो

बुद्धि उसकी हर जाती मैं ।।


नशा मेरा सिर चढ़ कर बोले

बैठने वाला मेरे मद में डोले

अज्ञानता का प्रभाव डाल मैं

मैं कूटनीति का खेल खेलती

काठ-धातु से बनाई जाती

कुर्सी मैं हूँ कहलाती ।।


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