कलम की धार हो तुम
कलम की धार हो तुम
कलम की धार हो तुम
दिल की पुकार हो तुम
छोड़ दूं जहां तेरे लिए
क्योंकि मेरा संसार हो तुम।।
मस्त निगाहों से न पूछो
दिल की मेरे क्या हालत है
याद तुम्हारी भूल गया तो
मेरी बुद्धि पर लानत है।।
जब जब देखा मैं न जागा
खोया सपनों में ही भागा
टूट गया पकड़ा था फिर भी
अपना पुण्य प्रेम का धागा।।
मिला हुए ख़त नहीं जलाया
ख़ुद रोया न तुम्हें रुलाया
साथ छोड़ दी ये आवाजें
जब जब मैने तुम्हे बुलाया।।
दूर गया पर दूर गया न
देकर भी कुछ यार दिया न
सारा जीवन बुझता दीपक
ठिठुर गया पर दान लिया न।।
