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आचार्य आशीष पाण्डेय

Fantasy

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आचार्य आशीष पाण्डेय

Fantasy

कलम की धार हो तुम

कलम की धार हो तुम

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कलम की धार हो तुम

दिल की पुकार हो तुम

छोड़ दूं जहां तेरे लिए

क्योंकि मेरा संसार हो तुम।।


मस्त निगाहों से न पूछो

दिल की मेरे क्या हालत है

याद तुम्हारी भूल गया तो

मेरी बुद्धि पर लानत है।।


जब जब देखा मैं न जागा

खोया सपनों में ही भागा

टूट गया पकड़ा था फिर भी

अपना पुण्य प्रेम का धागा।।


मिला हुए ख़त नहीं जलाया

ख़ुद रोया न तुम्हें रुलाया

साथ छोड़ दी ये आवाजें

जब जब मैने तुम्हे बुलाया।।


दूर गया पर दूर गया न

देकर भी कुछ यार दिया न

सारा जीवन बुझता दीपक

ठिठुर गया पर दान लिया न।।


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