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Brijlala Rohanअन्वेषी

Classics Fantasy Inspirational

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Brijlala Rohanअन्वेषी

Classics Fantasy Inspirational

देवी

देवी

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तुम्हारी सादगी और सरलता,

सबका अपनों की तरह ख्याल रखना।


लोगों की भावनाओं को समझकर

अपनी संवेदनशील नजरिया अपनाना !

खासकर मेरी गम ! हर खुशी !

को बताने से पहले खुद ही महसूस लेना।


और सबसे निःस्वार्थ, 

नि:छल प्रेम का पावन रिश्ता।

 ये सब बातें तुम्हारे अंदर पाकर,

मेरी माँ ! मुझे यह तुमसे पूछने के लिए

मजबूर कर देती,

कि क्या तुम कोई साक्षात् देवी हो ?

तुम सबके दु:ख,दर्द को बाँटती हो।


अंतर्मन में न जाने कितने तकलीफ सहती हो !

फिर भी कभी कुछ नहीं कहती हो ! 

अंदर से कुंठित मन,

लेकिन बाहर से हँसमुख, स्वभाव !     


कहीं किसी से कोई अपनी गिला-सिकवा नहीं !        

जो दु:ख -दर्द मिलता है,

वो सब मुस्कुराकर सहती चली जाती हो ! 

बताओ न माँ! तुम कोई देवी हो ?


लोग तुम्हें पागल कहते हैं ?

पर माँ ! लोगों क्या कहेंगे ?    

ये लोग पर ही छोड़ दो ! 

तुम पागल भी हो तो कृष्ण के प्रेम में !

दीवानी भी हो तो मुरलीवाले के मुस्कान पे ! 

माँ तुम सचमुच देवी हो !


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