देवी
देवी
तुम्हारी सादगी और सरलता,
सबका अपनों की तरह ख्याल रखना।
लोगों की भावनाओं को समझकर
अपनी संवेदनशील नजरिया अपनाना !
खासकर मेरी गम ! हर खुशी !
को बताने से पहले खुद ही महसूस लेना।
और सबसे निःस्वार्थ,
नि:छल प्रेम का पावन रिश्ता।
ये सब बातें तुम्हारे अंदर पाकर,
मेरी माँ ! मुझे यह तुमसे पूछने के लिए
मजबूर कर देती,
कि क्या तुम कोई साक्षात् देवी हो ?
तुम सबके दु:ख,दर्द को बाँटती हो।
अंतर्मन में न जाने कितने तकलीफ सहती हो !
फिर भी कभी कुछ नहीं कहती हो !
अंदर से कुंठित मन,
लेकिन बाहर से हँसमुख, स्वभाव !
कहीं किसी से कोई अपनी गिला-सिकवा नहीं !
जो दु:ख -दर्द मिलता है,
वो सब मुस्कुराकर सहती चली जाती हो !
बताओ न माँ! तुम कोई देवी हो ?
लोग तुम्हें पागल कहते हैं ?
पर माँ ! लोगों क्या कहेंगे ?
ये लोग पर ही छोड़ दो !
तुम पागल भी हो तो कृष्ण के प्रेम में !
दीवानी भी हो तो मुरलीवाले के मुस्कान पे !
माँ तुम सचमुच देवी हो !