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Kumar Gaurav Vimal

Romance Fantasy

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Kumar Gaurav Vimal

Romance Fantasy

आते रहना...

आते रहना...

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मैं बैठा समुद्र किनारे रेत सा,

तुम लहर सी बनकर आते रहना...

कुछ मुझको खुद में घोलना,

कुछ खुद को मुझसे मिलाते रहना...

मैं बैठा समुद्र किनारे रेत सा,

तुम लहर सी बनकर आते रहना...


गुजरते है इन अरमानों से,

कई जाने पहचाने से चेहरे...

छोड़ जाते हैं अपने निशान,

दिल पर हमारे काफ़ी गहरे...

अनायास ही यहां आकर तुम,

निशान ये सारे मिटाते रहना...

मैं बैठा समुद्र किनारे रेत सा,

तुम लहर सी बनकर आते रहना...


सूरज सी गर्म दोपहरी में,

ये दिल ख़ुद में ही है तपता...

आती है जब बेरहम हवाएं,

हर ज़ख्म खुले में है दुखता...

कम करने को तपिश हमारी,

शीतल जल से हमें भिगाते रहना...

मैं बैठा समुद्र किनारे रेत सा,

तुम लहर सी बनकर आते रहना...


देखते रहे किनारों से,

हर वक्त तुझे लहराते हुए...

द्वीपों से कुछ सीपों को भरकर,

ले आना कभी तुम आते हुए...

कर के वादा आने का,

इंतजार तुम यूं ही कराते रहना...

मैं बैठा समुद्र किनारे रेत सा,

तुम लहर सी बनकर आते रहना...


कुछ मुझको खुद में घोलना,

कुछ खुद को मुझसे मिलाते रहना...

मैं बैठा समुद्र किनारे रेत सा,

तुम लहर सी बनकर आते रहना...


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