प्रेम का ज्वार,
प्रेम का ज्वार,
उठे जब तुम मैं प्रेम का ज्वार,
तब किसी के आलिंगन की चाह न करना।
जीवन इंधन हैं ये अगन,
जलना उसमें
हौसला वह पतंगो वाला रखना
पिघल जाने को बाहें न तलाशना।
जब खुद ही जलोगे ज्योत की तरह
रोशन मन, प्रेममय जीवन
क्योंकर न होगा !
इस पथ पर तुम, जलना, तड़पना
लेकिन सब्र के फल की ही नहीं..
मंज़िल की भी चाह न रखना,.
तब ही जानो पाओगे स्वतंत्र होने का मोल तुम
तुम्हारे हृदय में जन्म लेता ये प्रेम;
ये हैं स्वतंत्र , बंधन मुक्त, शिववत...
अपने में ही मगन, संतुष्ट;
अपने- आप में ही पूर्ण....