रुबरु
रुबरु
कोई लम्हा दिल मेरा उसे भुलाता नहीं
ख्वाब में रहता है वो रुबरु आता नहीं
उसे देखने की कोई जुस्तजू नहीं है
मगर बिना देखे दिल को चैन आता नहीं
कहीं दिल में है ख्वाहिश कहे वो भी
ख्यालों में तु आए तो और कुछ आता नहीं
खु़मार आंखों का है या उसके नाम का असर है
किसी शबाब में तो ऐसा ख़ुमार आता नहीं
सुनो क्या कहे तुमसे बेताबी मेरे दिल की
रह के दिल में कोई दिल को तड़पाता नहीं।

