कशमकश
कशमकश
मुझे देखकर वो तेरा शरमाना
कभी निगाहें मिलाना कभी चुराना
दबे दबे होंठों से बरबस मुस्कुराना
किसी न किसी बहाने से सामने आना
खड़े खड़े नाखूनों से जमीन कुरेदना
पल्लू को अपनी उंगली पर लपेट लेना
कभी कभी आंखों से बिजली गिराना
पास से निकलने पर इग्नोर करना
हमने कई बार चाहत का इजहार किया
मगर तुमने ना इकरार ना तकरार किया
हम आज तक संशय के भंवर में पड़े हैं
अपनी ही नज़रों में खुद शर्म से गड़े हैं
लबों से न सही आंखों से ही बता देती
इशारों से ही हाल ए दिल जता देती
बरसों गुजर गये कशमकश के पलना में
कि तुम्हारा जवाब हां में था या ना में।