सुरमई शाम
सुरमई शाम
ये शाम सुरमई सी सज जाती है
जब तू दबे पांव मेरे पास आती है
मधुवन सा खिल जाता है बावरा मन
मुझे देख जब तू मंद मंद मुस्कुराती है
निगाहों का नूर चांदनी सा बहने लगता है
ये फिजां ये वादियां मचलकर भीग जाती है
गालों को छूकर पवन बौरा कर चलने लगी
अधरों की शराब से कायनात लड़खड़ाती है
जुल्फ बिखरने से अंधेरे का अहसास होने लगा
तेरी खामोशी मेरे दिल में शोर बहुत मचाती है
रोज बनाता हूं तस्वीर तेरी शोख अदाओं की
मेरी धड़कन हर रोज तेरी महफ़िलें सजाती है।