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Kavita Verma

Abstract Drama

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Kavita Verma

Abstract Drama

यादें

यादें

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यादें 

कभी सोचती हूँ 

दिमाग जो होता एक डिबिया 

निकाल कर देखती उसमें पड़े 

विचार, भाव रिश्ते-नाते ,

यादें, एहसास, घटनाएँ 

हौले से छूकर सहलाती 

संचेतना भरती उनमें 

हंसती, रोती, खिलखिलाती 

फिर महसूसती उन्हें 


करीने से फिर रखती 

छांट बाहर करती 

अगड़म -बगड़म विचार 

टूटे बेजान रिश्तों के तार

टीसते एहसास 


खाली पड़े कोनों को भर देती 

किसी सुंदर विचार से 

सुनहरी यादों की गोटी किनारी से 

सजा लेती डिबिया 


लेकिन,

उस एक अनाम से रिश्ते 

जाने अनजाने से नाम 

कुछ अनबूझे से भाव ,

कुछ कसकती बातें, यादें 

झाड़ पोंछ कर फिर सहेज देती 

छुपा देती फिर किसी कोने में 

चाह कर भी न निकाल पाती 

निकाल कर भी न भुला पाती 

वो बसी है दिल में कहीं गहरे 

बहुत गहरे



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