ख्वाबों का मलबा
ख्वाबों का मलबा
बड़े दिनों बाद खंगाला आज उसे,
देखा की....
बहुत कुछ दबा पड़ा था,
बिखरे पड़े कुछ ख्वाबों के मलबे में..
यादें थी कुछ, कुछ फरियादें थी
तस्वीरे थी कुछ...
कुछ तअस्सुर था अभी भी उनका
कुछ किताबे पड़ी थी..
जिनमें कविताएं थी ,कुछ नग्मे थे,
कुछ गीतों की गुनगुनाहट थी
दबी दबी सी आवाज थी
कुछ अल्फाज थे..
और कुछ होंठो की फड़फड़ाहट थी
देखते देखते ना जाने कब
झरने की तरह विचारो की दुनिया में
उझला गया मैं,
मन मस्तिष्क की अथाह गहराइयों में
उतरता चला गया मै,
देखा की ढेरी पड़ी थी मलबे की
दबे पड़े थे एहसास कुछ
और जो चुकाने बाकी रह गए
वो एहसान दबे थे,
लड़ाईयां थी ,कुछ झगड़े थे
कुछ पत्थर थे..
उनके बीच पड़े दिल के टुकड़े दबे पड़े थे
कुछ सवाल जो अरसो से दबे थे ,
लगता हैं वो मलबा कोई जवाब था
टूटता गया, बिखरता गया जो वक्त के साथ
वो मलबा कोई ख्वाब था।