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Ravindra Bhartiya

Drama Fantasy Inspirational

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Ravindra Bhartiya

Drama Fantasy Inspirational

कुछ है कांच सा, जो टूट जाता है

कुछ है कांच सा, जो टूट जाता है

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कुछ है कांच सा, जो टूट जाता है

कुछ है, हीरे सा जो अटूट है। 

रेत थी हाथ में जो, अब धीरे धीरे सरक रही है

पर कुछ है, जो अभी भी हाथ थामे रख रही है,

कुछ है कांच सा, जो टूट जाता है 

कुछ है वज्र सा, जो सब कुछ जोड़े रखता है

फूल थे जो दिल के बागान में, किसने तोड़ लिए ?

कुछ पता नहीं पर कुछ है, जिससे माहौल अभी भी महक रहा है

कुछ है कांच सा, जो टूट जाता है 

कुछ है लोहे सा, जो मजबूत है 

अभ्र सारे बरस कर कब के यहां से चल दिए,

पर कुछ है, जो बन के अश्क मूसलाधार बरसे जा रहे।

कुछ है कांच सा, जो टूट जाता है 

कुछ है चट्टान सा, जो अडिग है

चांदनी थी जो कुछ पल की, अंधेरे में अब बदल गई।

लेकिन इस अंधेरी रात में भी, कुछ है जो,

मेरे सीने में पूर्णिमा के चांद की तरह चमक रहा है।

कुछ है कांच सा, जो टूट जाता है 

कुछ है श्वास सा, जो हर पल साथ है

इस गरम मौसम में, शरीर पूरी तरह झुलस रहा है

पर कुछ है पानी की तरह, जो थोड़ी ठंडक देता है।

कुछ है कांच सा, जो टूट जाता है 

कुछ है रेगिस्तान में उगे किसी वृक्ष सा,

जो मन को सुकून देता है।

कोई तूफान सब कुछ उजाड़ने पे आतुर है पर कुछ है,

जो मां के किसी टोटके की तरह मुझे हमेशा सुरक्षित रखता है।।


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