कुछ यूं ही
कुछ यूं ही
आए कोई यूं ही जिंदगी में,
बने कोई साथी इस सफर में।।
तीखे स्वाद में जो मिठास हो,
बरसात के मौसम में जो छाते सा हो,
डगमगा जाऊँ मैं तो वो एक सहारे सा हो,
आखरी उम्मीद में वो गुंजाइश हो।।
आए कोई यूं ही जिंदगी में,
बने कोई साथी इस सफर में।।
वो भूल की माफी सा हो,
तपती दोपहरी में चंदन सी ठंडक सा हो,
तेज़ हवाओं में लिबास सा हो,
हार के आलम में उम्मीद सा हो।।
आए कोई यूं जिंदगी में,
बने कोई साथी इस सफर में।।
उजड़े हुए बाग में वो बसंत सा हो,
किसी नारी के श्रृंगार सा हो,
मुझ फकीर की जिंदगी में वो खुदा सा हो,
मेरी आखरी सांसों में वो जन्नत के सबक सा हो।।