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रिपुदमन झा "पिनाकी"

Drama Classics Inspirational

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रिपुदमन झा "पिनाकी"

Drama Classics Inspirational

हम कितने आज़ाद हुए

हम कितने आज़ाद हुए

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वर्ष पचहत्तर हो गए हमको, लोगों अब आज़ाद हुए।

लेकिन यह सोचो कि प्यारे, हम कितने आज़ाद हुए।।


बाद हुए आज़ाद देश अब, विकसित हैं संपन्न हैं।

मगर पचहत्तर साल बाद, भी हम कमजोर, विपन्न हैं।


सोने की चिड़िया कहलाता था जो आज बना है दीन।

आज अराजकता के मकड़े, जाले घने रहे हैं बीन।


राजनीति ने देश की हर उन्नति का सत्यानाश किया।

जाति-धर्म के झगड़ों में, उलझाकर पूर्ण विनाश किया।


गुंडागर्दी को अब तो आंदोलन, क्रांति कहते हैं।

हिंसक गतिविधियों को देश में अमन, शांति कहते हैं।


आज चरम पर पहुंच चुकी है बेईमानी और भ्रष्टाचार।

न्याय व्यवस्था क्षीण हुई है, संविधान भी है लाचार।।


नारी लज्जा त्याग देह का, अधनंगी हो घूम रही।

संस्कार, मर्यादा की सीमा को पल-पल तोड़ रही।।


बिकते हैं संबंध यहां, दौलत के तराजू में तुल कर।

सम्मान रहा नहीं मानव का, मानव के प्रति नहीं है आदर।।


दान-पुण्य बिन काम न होता, सरकारी कामों में आज।

बिके हुए सब तंत्र राष्ट के, रिश्वतखोरों का है राज।।


विश्व गुरु भारत में अब तो शिक्षा, स्वास्थ्य बना व्यापार।

आरक्षण की जंजीरों ने किया देश का बंटाधार।।


जाति-धर्म ही तय करते हैं, यहां योग्यता का आधार।

धूल फांकते योग्य यहां पर, और अयोग्य का हो सत्कार।।


अभिव्यक्ति की आजादी का करते ग़लत प्रयोग सभी।

भारत के टुकड़े करने में, करते हैं उपयोग सभी।।


राष्ट्र भक्त और राष्ट्र के चिंतक, राष्ट्रद्रोह की राह चले।

हित अनहित की बात करे और राष्ट्र के संग खुद को भी छले।।


क्या ऐसे भारत का सपना, देखा था उन वीरों ने।

प्राण तजे थे इसी घड़ी के लिए अमर रणधीरों ने।


देख दशा भारत की पछताते होंगे वह मन ही मन।

व्यर्थ दिया बलिदान था अपना, व्यर्थ जलाया अपना तन।।


जनता भी जब नहीं सुधरना चाहे तब कोई क्या करे।

अपनी करनी का फल भोगे, मूल्य किये का सभी भरे।।


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