डर
डर
डर हमारे जीवन का एक हिस्सा है,
इंसानी दिमाग से जुड़ा एक किस्सा है,
किसी को डर है इंसान का,
तो किसी को डर है शैतान का।।
कोई खुद की परछाई से भी डरता है,
किसी को किसी के खोने का डर होता है,
शायद ही दुनिया में कोई इंसान होगा,
जिसे किसी भी बात का डर नहीं होता है।।
डर हर किसी को लगता है,
कोई कहता है कोई छुपा लेता है,
कोई भी प्राणी इससे नहीं बच सकता है,
थोड़ा-थोड़ा डर तो सभी को लगता है।।
डर तो इंसान के दिमाग में होता है,
दिमाग ही उत्पन्न करता है दिमाग ही हटाता है,
पर जो अपना मन मजबूत कर लेता है,
वो अपने डर पर काबू पा लेता है।।
ऐसे ही एक बच्चे की यह दास्तान है,
जिसे पढ़ाई से डर लगता था,
किताबे, कॉपी, कलम सभी उसे डराते थे,
क्योंकि पढ़ाई के प्रति डर उसके दिमाग में बैठा था,
पढ़ाई का नाम सुनकर ही पसीने छूट जाते,
किताबों को देखकर ऐसे डरता मानों भूत देख लिया,
पढ़ते-पढ़ते बीच में ही अटक जाता वो,
मानो किसी हैवान ने उसका गला पकड़ लिया।।
जब होती परीक्षा और भी सहम जाता,
उसका डर उसके दिमाग पर हावी हो रहा था,
पढ़ाई करना बहुत कठिन काम है,,
इस डर के कारण वो किताबों से दूर भागता था।।
कब डर की गुफ़ा में उसने प्रवेश किया,
उसके माता-पिता को भी इसकी भनक ना लगी,
किंतु पानी सर से ऊपर चला गया जब,
पेरेंट्स को उसकी चिंता सताने लगी।।
उसकी मां ने निश्चय किया डर मन से निकालेगी,
अपने बच्चे को डर से लड़ना सिखाएगी,
मां ने बच्चे को समझाया डर कहीं नहीं दिमाग में होता है,
पर हमारे अंदर वो शक्ति है जो डर को निकाल सकता है।।
अपनी शक्ति पहचानो और डर को निकाल फेंको,
पढ़ाई नहीं कठिन काम तुम किताबों को दोस्त बना लो,
फिर वो तुम्हें डराएंगे नहीं दोस्त बनकर साथ निभाएंगे,
डर तुमसे शक्तिशाली नहीं है आजमा कर देख लो,
मां ने समझाया डर सभी को लगता है,
किंतु उससे डरोगे तो वो और तुम्हें डराएगा,
तुम्हें अपनी शक्ति से ही इस डर से आगे निकलना होगा,
दिमाग के इस डर को हर हाल में हराना होगा,
काम कर गया बच्चे पर मां का समझाना,
सीख लिया बच्चे ने मन से डर को निकालना,
अब वो मन लगाकर करता है खूब पढ़ाई,
झटपट शब्दों को पढ़ता है किताबें अब दोस्त बन गईं।।
हर इंसान के अंदर एक शक्ति होती है,
जिससे वो डर को बाहर निकाल फेंक सकता है,
किंतु कोशिश हमें स्वयं ही करनी है,
कोई दूसरा तो केवल हमें समझा ही सकता है।।