इरादा
इरादा
चलिए चर्चा कोई नई की जाए
ज़िंदगी किताबों से हटाकर जी जाए।
यह क्या कि इतने दायरे हों इसमें।
पंख फैला सके परिंदे को जगह दी जाए।।
डरा-डरा के कायनात को क्यूँ समेटा जाए।
खुदा है तो कुछ भरोसा उस पे भी किया जाए।।
यह क्या कि सिर्फ जीते जाने की जुस्तजू हो।
चुरा के सतरंग, जिंदगी को रंगा जाए।।
मुश्किलें टिकती हैं ग़र उनकी खुसूसी खिदमत हो।
पहचानिए कि उन्हें दरवाज़े से ही रुखसत किया जाए।।
चाहता कौन है कि जालों मकड़ों में उसका घर हो।
इरादा हो तो आज घर अपना सजाया जाए।।
अंगुलियों ने मेरे जिस्म से अजीब वादा किया।
दिल की हुकूमत में उन्हें बेखौफ नचाया जाए।।
फिर भूख से रोता कोई बच्चा ना गली में दिखे।
हर रसोई से इक निवाला बदस्तूर बचाया जाए।।
