तरक्की ?
तरक्की ?
सुना है सदियों पहले,थे हम जानवर
पथ प्रगति चले, बन के आदमी
लाज की ख़ातिर,समुद्र के दंभ पर
शौर्य का पुल ,बनाया था हमने तभी
मशीनें बनाई ,सुविधा के लिए
हर वो चीजें बनाई, जो ऐश्वर्य दे
किया निर्माण फ़िर, मशीनी आदमी
इशारे पे, हुक्म बजाने के लिए
एटमबम तक बनाने में हुए सफल,
दुश्मनों के हर कपटी नज़र के लिए
हर जमीं, क्या नभ या अंतरिक्ष पटल,
चांद तक का सफ़र भी नामुमकिन नहीं
पर....
भूल इंसानियत,मन में हैवानियत
सुना है, फिर रहा आजकल आदमी
तरक्की सारी धूमिल,अकारथ तेरी,
जो कभी जानवर, फ़िर बना आदमी ।