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Sulakshana Mishra

Abstract

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Sulakshana Mishra

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अजीब दास्तां है ये

अजीब दास्तां है ये

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अजीब दास्तां है ये

या यूं समझिये कि

है ये एक कड़वी हकीकत।

ये ज़िन्दगी का खेल है

नियम अजीब हैं यहाँ के

और अजीब है

यहाँ सबकी नियत ।

मेरे सच की नुमाइश में

एक भी खरीददार न मिला

जो झूठ मैंने बोला

काफिला सा बन गया ।

मुस्कुराहटों को मिले

बड़े कदरदान 

और आंसुओ को

आँखों में भी ठिकाना न मिला ।

महफिलें तो बहुत सजीं

पर हमको 

हमारी सुनने वाला 

कोई कभी हमराज़ न मिला।

चलते रहे तपती ज़मीन पे

इस तपिश में कभी

सुकून का एक पल 

कभी ख्वाब में भी न मिला।

जो ख़ुशी में हम घिरे

तो मजमा सा लगा,

जो गम में हम पड़े

तो हम तक आने का

किसी को बहाना तक न मिला ।


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