अजीब दास्तां है ये
अजीब दास्तां है ये
अजीब दास्तां है ये
या यूं समझिये कि
है ये एक कड़वी हकीकत।
ये ज़िन्दगी का खेल है
नियम अजीब हैं यहाँ के
और अजीब है
यहाँ सबकी नियत ।
मेरे सच की नुमाइश में
एक भी खरीददार न मिला
जो झूठ मैंने बोला
काफिला सा बन गया ।
मुस्कुराहटों को मिले
बड़े कदरदान
और आंसुओ को
आँखों में भी ठिकाना न मिला ।
महफिलें तो बहुत सजीं
पर हमको
हमारी सुनने वाला
कोई कभी हमराज़ न मिला।
चलते रहे तपती ज़मीन पे
इस तपिश में कभी
सुकून का एक पल
कभी ख्वाब में भी न मिला।
जो ख़ुशी में हम घिरे
तो मजमा सा लगा,
जो गम में हम पड़े
तो हम तक आने का
किसी को बहाना तक न मिला ।
