एक कटु सत्य
एक कटु सत्य
भाग्य से ही जब जीवन चलता, कर्म क्यों करता है जहान
बैठे-बैठे सब मिलेगा, चिंता में रहता क्यूँ इंसान।।
मंदिर-मस्जिद में भगवान मिले तो, मात-पिता का फिर क्या काम
सत्संग आश्रम में ज्ञान मिले तो, पुस्तकों को मिलता क्यों सम्मान।।
देने वाला ईश्वर है तो, पंडित माँगता है क्यों दान
बड़ी-बड़ी क्यों दान पेटियाँ, जहां विराजते है भगवान।।
गरीबी में हर दोष है दिखते, गरीब का बेटा चोर समान
पैसे वाला गाली भी दे तो, वो भी लगता बड़ा इनाम।।
वचन का किसी के मोल ना कोई, ना वक्त का जरा भी भान
रंक से राजा बनता पल में, वक्त से बढ़कर ना भगवान।।
दुख आए तो छोड़ चले, सुख में होते एक ही जान
जो दोष ही दोष को रहे देखते, होते ऐसे रिश्ते रेत समान।।
वक्त सही तो सब सही हो, ग्रहों का टूटता तब गुमान
हर दोष तब धूल चाटते, खुश हो जाते सब भगवान।।
डर, क्रोध से बड़ा ना शत्रु कोई, हर पल लेता जो जान
खुद पर है विश्वास तो जग में, सुख-दुख एक समान।।
पत्थरों में विश्वास जागता, झूठा लगता हर इंसान
स्वार्थ को अपने छोड़ ना पाता, कैसे होगा फिर कल्याण।।
सेवा भाव ना हृदय रखे, करोड़ों का करता फिर क्यों दान
ना पूर्व जन्म की बात कहीं पर, फिर क्या पाप-पुण्य की शान।।
आँख खोलकर देख लो बंधु, इच्छाओं के सब गुलाम
ना प्रकाश की जोत जलेगी तो, क्या करेगा ये इंसान।।
सही दिशा और सही कर्म से, जीवन बनता महान
बिना कर्म के कुछ नहीं मिलता, नहीं मिले पहचान।।
