आह्वान
आह्वान
आह्वान करो
कुत्तें भौकतें रहे
भेड़ियें नौच कर
जो तालिमाफ्ता रहे
वो मौन बने रहे
किसका घर जला
किसकी लाश गिरी
किसका बलात्कार हुआ
किसकी लाज गिरी
मीडिया कहाँ जा छुपा
जो अभी तक चाट रहा था तलवे
कहाँ गई अब हिंदुत्व की ग़ैरत
जो भाड़ रही थे धर्म के नाम पर
इंसानियत की आस्तीनें
वो पेंडुलम की तरह घूमती गुर्राती
मन की बातें जो कहीं शांत छुपी है
यह जो हाथरस में हुआ
वो कोई पहली बार तो नहीं
आखिरी बार हो सकता है
अगर अपने मुर्दा पड़े ज़िस्म में
तुम कुछ ज़िंदा कर सको
अपने वज़ूद को
काश ! तुमने अपने ज़मीर को
चंद स्वार्थी कुत्तों के सामने
निवाला बनाकर न परोसा होता
तो न देश का जवान मरता सरहद पर
न देश में किसान मरता किसी घर पर
न माँ - बाप अपने बच्चों पर
यूँ बोझ बनकर गिरते फिरते
न बेटी बहु माएं यूँ शर्मसार होती
हर गली हर नुक्क्ड़ हर चौराहे पर
कौन सी मिट्टी के बने हो तुम
तुम्हें भी जन्म देने वाली कोई माँ ही है
वो भी एक औरत ही है
उसके दूध और खून को तुमने
तार -तार कर दिया है
वक़्त भी कुछ ज़ख्मों पर
मरहम न लगाकर नमक लगा जाता है
शायद इसी नमकीन तस्सव्वुर का नाम जिंदगी है
जिंदगी जो बेमानी है
जिंदगी जो ध्वस्त हो रही है
मौन न रहो तुम पत्थर नहीं हो
तुम्हारे ह्रदय में धड़कता हुआ दिल भी है
जो अभी स्वार्थसिद्धि के लिए धड़कता है
उसके भाव बहाव और लगाव को
सही दिशा में लगाओ
बहन बेटी के कुकर्मियों को
दुराचरारियो को सरे बाज़ार
फांसी पर लटकाकर मौत का
फरमान जारी करो
जाति -धर्म भाषा खेत्रवाद आदि
से ऊपर उठकर एक
नव निर्माण का
आह्वान करो