STORYMIRROR

Chaitanya Desale

Abstract Drama

4  

Chaitanya Desale

Abstract Drama

सोचता हूँ कहानी

सोचता हूँ कहानी

2 mins
190


सोचता हूँ कहानी, लिख दूँ कोई सुहानी

कलम के इक कदम से बदल दूँ जिंदगानी


खुद मैं जो ना बन पाया, ऐसा इक किरदार बनाऊँ

सबकी रहमत जिससे सहमत, ऐसा संसार बनाऊँ

अपने वक्त के सिक्के निसार, मैं इस जग के लिये,

अलग जिंदगी जीने का इश्तहार बनाऊँ


जवां करूँ उन सपनों को, जो खाक में जलकर धुआँ हुए है

बयां करूँ अलफाजों को, जो जग के रियाज में राज हुए है

कर दूँ आगाज उन दिल- ए – जज़्बातों का,

जिस खिलाफ कभी इस जहां ने कुछ रिवाज किये है


सोचता हूँ कहानी, लिख दूँ कोई सुहानी

कह दूँ वो बाते, जिससे रूह है अंजानी


हो पल सुबह का, या दिन ढल शाम आए

लिखूँ तब तक, जब हर जुबां पे मेरा नाम आए

है मुश्किल किसी इन्सा से करनी मुहब्बत,

जब संग हमारे, शब्दों का आवाम आए


बाट लूँ उस दर्द को, जो हर मन में कही गुप्त है

ढूंढूँ उस नादानी को, जो हर शख्स में लुप्त है

ये उस खुदा ने ही है तय किया,

की उसकी लिखी इस कहानी में, मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाऊँ


सोचता हूँ कहानी, लिख दूँ कोई सुहानी

कलम के आलम से बना दूँ ये दुनिया रूहानी


कुछ व्यंग लिखूँ, कुछ सख्त भी हो

जिसे पढ़ने को थमता, ये वक्त भी हो

ये बेवफा स्याही कभी हो जाये खत्म,

तब लिखने को हाजिर मेरा रक्त भी हो


सुनाऊँ वो कहानी, जिसे आज तक किसी ने कहा नहीं

जिसमें बसे सारी दास्ताँ, सिर्फ इक लम्हा नहीं

इस तरह वो साथ दे जिंदगी का,

जो सुन ले वो इक पल भी तन्हा नहीं


सोचता हूँ कहानी ......


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract