हे विष्णु- हे अनंत
हे विष्णु- हे अनंत
विष्णु भगवान के गुण हम गाते, जो हृदय में सबके बसते है
त्रुटियों की अपनी क्षमा मांगते,
कर जोड़ प्रार्थना करते है।।
त्रिलोक के दुख को हरण करते, जब सुयज्ञ यज्ञ देवता बनते है
देवहुति के पुत्र न्यारे
ब्रह्म ज्ञान से माँ का उद्धार करते है।।
यदु, हैहय वंश बसाये, अवतार दत्तात्रेय का धरते है
परलोक गमन का मार्ग बना
योग सिद्धि को प्राप्त करते है।।
आत्मज्ञानी बने सनक, सनन्दन
संग सनातन, सनत्कुमर का रूप धर, अन्तर्मन से ध्यान किया, जो
ईश्वर का साक्षात करते है।।
मूर्ति के गर्भ से नर-नारायण प्रकटें
कामदेव, इंद्र को परास्त किया, उर्वशी अप्सरा भेंट में दी
अहं प्रह्लाद दैत्य का दूर करते है।।
मरुदेवी के पुत्र ऋषभदेवजी
जाने कितनों का उद्धार किया हयग्रीव रूप में वही विराजे
संहार हयग्रीव दैत्य का करते है।।
मतस्य बन के सिंधु मथाते, मोहिनी रूप से मन मोहते है
हिरणाकुश को देते पटकनी,
वृंदा व तुलसी वरते है।।
कर्म रूप में आए थे जब, नीव मन्द्राचल बनते है
चौदह रतनन को वो निकवाते,
रमा के मन को हरते है।।
धन्वन्तरि रूप में वही अवतरे
सभी रोगों का विनाश किया, औषधियों का निर्माण सभी
मानव को सुख प्रदान करते है।।
बालक जैसे वामनदेव जी, भिक्षाटन राजा बलि से करते है
नापा ब्रह्मांड तीन पग में,
फिर पग उनके शीश पर रखते है।।
हिरण्याक्ष पछाड़ा वराह रूप में, वेदों की रक्षा करते है
क्षेत्रिय विहीन की धरा भी,
तन जब परशुराम का धरते है।।
भस्मासुर को भस्म कराया, जब सुंदर नृत्य करते है
वसुंधरा माँ की पुकार सुने तब
युद्ध राम, रावण से करते है।।
महाबलवान ग्राह ने जब यूथपति पकड़ा
विष्णु उन पर वार किया
भक्त की पुकार को दौड़े आए, यूथपति को ग्राह से मुक्त करते है।।
समतल करते धरा को सारी, पृथु महाराज बनते है
कंस को देते पल में मुक्ति,
कृष्ण अवतार जब धरते है।।
भटके लोगों को राह दिखाने, बुद्ध, विस्तार ज्ञान का करते है
धर्म स्थापना फिर करने आते,
जब भेष कल्कि का भरते है।।
भक्तों की खातिर दौड़े आते, संतों की रक्षा करते है
नानक, रैदास, तुलसी तारे,
भाव सभी के समझते है।।
वैकुंठ में भक्तगण जाते सारे, न कभी द्वार नरक के फटकते है
मीरा, वृंदा, गणिका तारे,
जब प्रेम की वर्षा करते है।।