एक अजनबी
एक अजनबी
वहाँ धूप में खड़े एक अजनबी का इंतजार कर रही थी मैं
जैसे नज़दीक से गुजरते हर शख़्स का दीदार कर रही थी मैं
कहा था उसने सफ़ेद स्कूटी से आ रहा है
मानो हर गुजरते पल के साथ उसकी कही बातों का
एतबार कर रही थी मैं
बातें मुलाक़ातों में कब बदल गयी पता ही नहीं चला,
और अनजाने में अपना सब कुछ उसके नाम कर रही थी मैं
वो दौर भी कुछ अजीब ही था मानो,
उसके साथ होने के एहसास का अपनी रूह को
इत्तला कर रही थी मैं
वक्त तो सच में रेत की तरह फिसल गया
बस एक दिमाग़ वाले इंसान को
अपने दिल में जगह दे रही थी मैं
जानती थी कि शायद वो छोड़ ही देगा मुझे एक दिन,
ये सोच कर भी उस दिलकश के क़रीब जा रही थी मैं
कितनी तो हंसीं थी वो ज़िंदगी मेरी ,
फिर भी ना जाने क्यूँ अपने मौत का फ़रमान
उसके नाम कर रही थी मैं।
ये कशमकश को दूर करके की किसी को अपना बनाना
इतना मुश्किल भी नहीं,
उससे मिलने वाले हर ज़ख़्म का इंतजाम कर रही थी मैं
मेरा उसके ज़िंदगी में होना मजबूरी बन गया था उसकी,
और वहाँ खड़े अपनी महबूब की माशूका को सलाम कर रही थी मैं
ना जाने क्यूँ उस दिन भी खड़े एक अजनबी का
इंतजार कर रही थी मैं।।