कॉलेज - जान या जानी दुश्मन
कॉलेज - जान या जानी दुश्मन
वो कॉलेज का पहला दिन,
भीड़ में कहीं खोए से हम आपनो के बिन।
अपनी ब्रांच वालों को ढूंढ के उनके साथ बैठना,
फिर हमारा कॉलेज कितना अच्छा है
कॉलेज वालों का यही प्रचार करना ।
वो डर डर के पहली क्लास में जाना,
पता नहीं कैसे टीचर्स होंगे
यही सोचकर एक एक कदम बढ़ाना।
धीरे धीरे समय बीतने लगा,
कॉलेज एक घर लगने लगा।
पर क्लास हमेशा हमारी दुश्मन रही,
जिससे हमारी कभी ना बनी ।
लेकिन 75% अटेंडेंस के मारे थे हम,
पर मज़ा बहुत आती थी जब बैठते थे यार
ों के संग।
वो लास्ट में बैठकर टिफिन खाना,
टीचर क्या पढ़ा रहा ना उससे कोई लेना देना ।
पर बीच बीच में थे आते थे बॉम्ब
जिनको कहते थे मीडटर्म मिडटर्म,
वो ढेर सारे असाइनमेंट मिलना,
कितने दिन भी मिले हो हमें
हमें तो उन्हें एक ही दिन पहले सबमिट करना।
वो क्लास ना जाना हो तो जीटी के लिए सबको मानना,
पर हमेशा किसी एक जीटी तोड़ के अपना असली रंग दिखाना ।
एंड सेमेस्टर की एक रात पहले बैठकर सिलेब्स पूछना,
यार अगले सेम शुरू से पढ़ेंगे हर सेम का यही रोना ।