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Sonia Goyal

Abstract Drama Tragedy

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Sonia Goyal

Abstract Drama Tragedy

दुख अपना-अपना

दुख अपना-अपना

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पैसों वाला दुखी कि मैं इन्कम टैक्स कैसे बचाऊं, 

गरीब बोले समझ नहीं आता कि मैं रोटी कहां से लाऊं।


बेऔलाद दुखी कि बच्चों के बिना कैसा जीना, 

भगवान अगर लड़की ही दे दे तो लोहड़ी मैं मनाऊं। 


लड़के वाला दुखी कि बेटा नशे में है पड़ गया, 

इसका अब मैं किस लड़की के साथ ब्याह रचाऊं। 


लड़की वाले दुखी कि पश्चिमी सभ्यता ने है बर्बाद किया,

मैं इनको क्लब, फोन और फैशन से कैसे बचाऊं।


मंत्रियों का दुख हर जगह से कैसे कमाऊं,

फिर क्या पता मैं दोबारा राजनीति में कब आ पाऊं।


मरीज़ ये सोचकर दुखी कि डाक्टर की फीस कैसे बचाऊं,

डाक्टर का दुख मरीज़ का बिल कैसे बढ़ाऊं।


अध्यापक दुखी कि बच्चों के कारण मेरा रिजल्ट अच्छा नहीं बना,

बच्चे ये सोचकर दुखी कि मैं आज किस बहाने छुट्टी कर जाऊं।


पक्षियों का दुख कब मनुष्य जैसे कार चलाऊं,

मनुष्य दुखी कि कब मैं पक्षी बन आसमान में उड़ जाऊं।


भागदौड़ और आधुनिक तकनीकों ने दुखी किया है सबको,

दुख कवि का कि नई कविता मैं किसको बैठकर सुनाऊं।



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