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Sonia Goyal

Abstract Tragedy Inspirational

4.5  

Sonia Goyal

Abstract Tragedy Inspirational

ग़रीबी में छिनते सपने

ग़रीबी में छिनते सपने

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एक नन्हें बालक ने देखें कुछ सपने आंखें बंद करके,

नहीं जानता वह कि अब अंजाम क्या होगा।

जब उसकी आंख खुली तो पता चला,

इन मुफ्त के सपनों का दाम क्या होगा।


सुबह हुई तो मां की आवाज़ आई,

उठ जा बेटा तेरा काम पर जाने का समय हुआ।

नन्हा बालक बोला मां आज मन नहीं है,

मां का जवाब अगर नहीं गया तो आज के खाने का क्या होगा।


बालक बोला मां भगवान ने हमें यह कैसा जीवन दिया,

बाल्यकाल में भी मैं अपना बचपन नहीं देख पाया।

ग़रीबी ने मुझे शिक्षा से वंचित किया,

और होटल के झूठे बरतनों को मेरे हवाले किया।


दो वक्त की रोटी के लिए,

मुझे खाने पड़ते हैं मालिक की डांट और डंडे।

इस पापी पेट के लिए रोज़ दर-दर की ठोकरें खाता हूं,

समाज के तिरस्कार के कड़वे घूंट को

भी चुपचाप सहन कर जाता हूं।

मेरे भी तो कुछ सपने हैं,


जिन्हें मैं पूरा करना चाहता हूं।

पर मां इस ग़रीबी ने मुझे ऐसे मजबूर किया है,

मेरे सपनों से मुझे कोसों दूर किया है।

मेरे सपनों के सूरज को,


मेरे भाग्य ने चुरा लिया।

मेरे मंजिल तक पहुंचने के रास्ते को,

मेरी ग़रीबी के इन बादलों ने छुपा लिया।

सुनकर बालक की बातें,

मां की आंखों से आंसू छलक गए।

मां बोली कैसे इस ग़रीबी में,

मेरे बच्चे के सपने बिखर गए।


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