आखिरी सफ़र
आखिरी सफ़र
मेरे दर पर खड़े लोग, देख रहे थे इन तमाशों को
मौत की खबर मेरी, दे रहे थे मेरे हम खासों को
आ गए फिर धीरे - धीरे, कुछ लोग मेरे पास
मेरे आखिरी सफ़र का, करने लगे आगाज़
अपनी ही मां की नम, आंखों को सेक रही थी
मर चुकी थी फिर भी, खुली आंखों से सब देख रही थी
मुझ पे डाला सफेद कफन, आंखें भी बंद कर दी
जीते जी जो भी पहना, पर मरने के बाद यही है सबकी वर्दी ।।
चार ने मुझे कंधों पे उठाया, एक जलती हाण्डी पकड़े आगे चला
जो लगाते थे कभी मुझे गले, आज उनके लिए भी बनी थी मैं बला
मैं कैसे कहूं, अभी उनका आना बाकी है
जो कहा करते थे तू ही, मेरी हमदम मेरी साकी है
खैर दोनों के घरों में, रिश्तेदार बराबर ही आएंगे
तुम्हारी बारात के आगे नाचते और, मेरे जनाजे के पीछे रोते जाएंगे
जब उसकी गली से मेरे जनाज़ा, ले जाया जा रहा था
तो मुझे भी गुज़रा हुआ, ज़माना याद आ रहा था
उसकी दुल्हन के हाथों में मेहँदी, और बदन पर लाल जोड़ा सजा था
हमसे भी तो पूछे कोई, सफेद कफ़न का क्या मजा था
देखते-ही-देखते मेरा श्मशान आ गया
और मुझे अपने पास ही राख बना गया