ये कैसी मर्जी....
ये कैसी मर्जी....
तुम्हारा यूँ खिलखिलाकर हँसना...
बिना रुके बात और बस बात करते जाना...
हम तुम्हें इसकी इज़ाज़त कैसे दे?
न जाने तुम कब समझोगी हमारी अदब और मैनर्स.....
तुम औरतों का आँचल को हवाओं में उड़ाना....
और लिबास के लिए जरा सा टोकने पर
कह देना कि कपड़ों से रेस्पेक्ट नहीं होता है....
तुम्हारी गुस्ताखियों को हम क्यों सहे?
न जाने कब समझोगी हमारे संस्कार और संस्कृति......
तुम औरतों का सबसे ज्यादा लफ़्ज़ों का उपयोग करना.....
हमारी कोई बात सुने बग़ैर अपनी ही बात करते रहना.......
इन बेख़ौफ़ हरकतों का क्या मतलब?
न जाने कब समझोगी हमारी रीतियों और परम्पराओं को.....
तुम औरतों का आँख में आँख मिलाकर हमसे बात करना....
देह के रिश्ते में अपनी मर्जी की बात करना......
इन हरकतों को हम कैसे क़ुबूल करें.....
न जाने कब समझोगी की तुम्हारे तन पर हमारा ही अधिकार है......
तुम सारी औरतें यह जान लो....
इक्कीसवीं सदी में भी तुम्हारी मर्जी नहीं चलेगी......
सिर्फ और सिर्फ हमारी ही मर्जी चलेगी.....