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Kanchan Prabha

Drama Tragedy

4.9  

Kanchan Prabha

Drama Tragedy

क्यों मुझको झुकना पड़ता है?

क्यों मुझको झुकना पड़ता है?

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जिन्दगी के हर मोड़ पर 

क्यों मुझको झुकना पड़ता है?

चलती रहूँ, चलती रहूँ 

और चलते हुये दौड़ पडूँ

पर मुझको रुकना पड़ता है

क्यों मुझको झुकना पड़ता है?


तपती राह हो या गहरी खाई

बचती जाऊँ आहिस्ते से

पर कुछ हो जाता है ऐसा

उस खाई में बड़ी ऊँचाई से

क्यों मुझको कूदना पड़ता है?

क्यों मुझको झुकना पड़ता है?


दीपक की तरह जलती जाऊँ 

अन्धकार मैं दूर भगाऊँ 

पर ये क्या होता मेरे साथ

क्यों मुझको बुझना पड़ता है?

क्यों मुझको झुकना पड़ता है?


कदम बढ़ा कर बढ़ती जाऊँ 

कटीले राह पर भी चलती जाऊँ 

पर ये क्या बार बार मुझको ही

किसी रस्सी के फंदे में फँस कर 

गिर गिर कर उठना पड़ता है 

क्यों मुझको झुकना पड़ता है?


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