खेल...
खेल...
इस अत्याधुनिक युग में
कुछ मनुष्य
न जाने क्यों
प्यार को
खेल समझते हैं ...
और प्यार भरा
दिल तोड़कर
हँसते हैं ...!
न जाने क्यों
कुछ मनुष्य
आज के इस
अत्याधुनिक युग में
दिल-से-दिल मिलाने को भी
खेल समझते हैं ...!
इस दिल से
उस दिल तक का
ये रिश्ता
जन्म-जन्मांतर का है...
इसमें आडंबर-स्वार्थ-अहंकार जैसे
गैरज़रूरी सोच को
कतई कोई स्थान
नहीं देना चाहिए ...।
हमें अपना जीवन काल
अपने अनुभवों पर
बिताना चाहिए,
न कि दूसरों का
अनुकरण करना चाहिए ।
ये जो ज़िंदगी है,
इसे हमें
अपने कर्म-संस्कृति द्वारा ही
निखारना चाहिए,
न कि परचर्चा एवं परनिंदा द्वारा
कलुषित-कलंकित-कालकवलित
नहीं करना चाहिए...।