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अनजान रसिक

Drama Classics Inspirational

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अनजान रसिक

Drama Classics Inspirational

क्रांतिकारी कल्पना

क्रांतिकारी कल्पना

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निरझरा ये कल्पना मेरी, कर जाती गुंजन ह्रदय में अकस्मात् ही,

कि बन के पंछी उड़ती रहूँ, मस्त गगन में,स्वतंत्र बंधनों से सभी मैं कभी ..

कभी तो तक़दीर में खुल के श्वास लेना लिखा होगा,


मैं मिल जाऊँ खुद से,एक पन्ना ऐसा भी जीवन की किताब में कहीं तो छपा होगा..

तक़दीर बनाई ऊपर वाले ने तो एक उपकार ये मुझ पर भी कदाचित्त किया ही होगा,

समाज की बंदिशों से ऊपर उठ के खुले वातावरण में नीलांबर की चादर ओढ़े

मात्र जी लूं मैं भी, लम्हा एक ऐसा कहीं तो कैद किया होगा..


थक गयी बातों से, कभी तो मधुरता से चहकना नसीब में होगा,

इस उम्मीदों के कारवां का कभी तो पूरा होना लिखा ही होगा.

दिल मेरा नादान है, टूट जाता है, बिखर जाता है कई बार,

इसका हर सपना कभी तो साकार होगा,सपना ऐसा आता बारम्बार ..


तांता सा लगा है लहरों का जो सैलाब बन के बहा ले जाती हैं ढाल के मुझे अपने रंग,

काश ऐसा हों सकता कि इस शांत अम्बर का साया चलता अपने आँचल में छुपाये अनवरत अपने संग.

ऐसी क्रांति का आगाज़ किया स्पंदन करती, चेतना जगाती, एक कल्पना -मात्र ने,

मुझे सपनों के अपने जहां से मिलने का सुवसर मिल गया अनूठे उस एक पल- मात्र में...


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