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Dineshkumar Singh

Drama Tragedy

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Dineshkumar Singh

Drama Tragedy

बिखरने लगा है, सब कुछ

बिखरने लगा है, सब कुछ

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बिखरने लगा है, सब कुछ,

जिन्हें प्रेम के बंधन में पिरोकर रखा था।

मोतियों की माला से आज कोई

अलग होना चाहता है।


मैं भी तो सिर्फ माली हूँ, 

कहाँ हक मेरा इन फूलों पर या इस बगिया पर,

कब तक संभालूंगा, जब कोई

आप ही टूटना चाहता है।


माटी के चंद घड़ो में, मैंने जीवन के अमृत भरे,

पर मेरा काम खत्म हुआ शायद,

अब हर एक घड़ा, इस जीवन सागर में,

खुद तैरना चाहता है।


मेरी जरूरत शायद खत्म हुई, मुझे अब चलना चाहिए।

दूसरों की परेशानी का सबब बनने से बचना चाहिए।

वक़्त भी शायद यह कहना चाहता है


बिखरने लगा है, सब कुछ, अब कोई नहीं कहानी

लिखना चाहता है।



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