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Dineshkumar Singh

Abstract Fantasy

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Dineshkumar Singh

Abstract Fantasy

दिन भर के किस्से

दिन भर के किस्से

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दिन भर में कई

कहानी है।

कुछ छोटे छोटे,

पल भर के

कुछ सालों चलते 

रहने वाले हैं।।


कुछ किस्से, चिर परिचित से,

कुछ बेगानों से होते हैं।

कुछ के किरदार हम खुद,

कुछ के अनजाने लोग होते हैं।


कुछ किस्से मैं लिखता हूँ,

पर ज्यादातर किस्सों में

दर्शक बनकर रह जाता हूँ।


कुछ किस्सों में, सिर्फ शोरगुल,

कुछ किस्सों में, उदासी

रहती है।

कुछ किस्से सिर्फ भीड़ का

हिस्सा भर,

कुछ में ठहाकों की हँसी

गूँजती है।


दिन भर के इन किस्सों को

रख सिरहाने, रात को मैं

सो जाता हूँ।

कुछ चुने हुए किस्सों को

सपनों की दुनिया में फिर

दुहराता हूँ।



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