याद आता है.......
याद आता है.......
बिना बातों के पिता से पिटाई होना याद आता है,
माँ के आँचल में छिपना याद आता है।
तिरछी माँग रखा करते, नई ड्रेस पहना करते,
नहा धोकर रेत में लेटना याद आता है।
वो भोपूं की आवाज़ गली से आती सुनती,
आइसक्रीम के लिए खाली बोतलों का बेचना याद आता है।
आँख-मिचौली खेलते समय कोने में रखा,
भाग कर उस तसले के नीचे छिपना याद आता है।
जब चीनी घोलते स्याही की डिबिया में,
अ अनार आ आम और गिनती व पहाड़े तख्ती पर लिखना याद आता है।
जब टोली बनाकर जाया करते, जोहड़-नदी में नहाया करते,
नहाते समय ईंटों को उछाला करते, उस ईंट में बहु का दिखना याद आता है।
सो जा बेटा नहीं तो चूहा आ जायेगा, सुनकर ऐसे,
जगी-जगी भी आँखों का बंद(मिचणा) करना याद आता है।
निशाना लगाकर फूट जाया करती खेलते समय उस,
एक कांच-गोली के लिए कई घंटों तक
रोना-चिल्लाना याद आता है।
एक रुपये की आती थी वो संतरों वाली 16 टॉफी,
शक्तिमान के स्टीकर को बाजू पर चिपकाना याद आता है।
गली वाली नाली में जब चलाया करते कागज की कश्ती,
धीमी-धीमी बारिश की बूंदों में भीगना याद आता है।
वो 52गज का दामन, वो लकड़ी वाला सन्दूक,
वो दादी जी का 9 डांडी वाला पंखा(बिजणा) याद आता है।
पानी के बहाने टोकनी उठाकर कुएँ पर जाना,
इंतजार में आँखों का उस रास्ते पर टिकना(डटना) याद आता है।
विद्यालय में जो लगा करते उन टीकों का डर,
अध्यापक का कान पकड़कर ऊपर खींचना याद आता है।
होली-दीपावली, तीज-त्यौहार के दिन माता के द्वारा,
घर-आंगन, चूल्हे-चौके को गोबर से लीपना याद आता है।
"कुलवीर बैनीवाल" कोई नहीं था गैर, सभी थे अपने,
खुले आंगन में मेहमान के लिए बिस्तर बिछाना याद आता है।