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Shashikant Das

Drama Tragedy

4.5  

Shashikant Das

Drama Tragedy

कतार में !

कतार में !

2 mins
247


चल दिए थे उस रोज जब अपनी बारी आई, 

लेनी थी मुझे भी इस बीमारी से लड़ने वाली दवाई

कई दिन पश्चात शरीर ने ली सूरज के तप से अंगड़ाई, 

प्रफुल्लित हुआ मन जब मिली किसी वृक्ष की परछाई।


पहुँचे जब हम दवा केन्द्र के अंदर, 

दिखा मुझे कुछ अनोखा सा मंजर

मानव श्रृंखला से बनी हुई थी लम्बी कतार, 

सबको इस रोग को खत्म करने का था इंतज़ार।


मेरे पग को भी मिली जगह उस कतार में, 

लेकिन मन था विचलित इस रोग के मझधार में

सभी के मुख पे थी एक अलग सी चिंतन, 

जैसे किसी हल के लिए कर रहे है आत्म मंथन।


कितने लोग दिखे जैसे इस समस्या से हों टूटे,

कितनों ने ढक लिया था अपना मुख लगा के पूर्ण मुखौटे

इस शांत माहौल में सुनाई दे रही थी हवा की सरसराहट,

और हर बढ़ते पग संग जूते और चप्पलों की आहट।


थी थोड़ी सी उलझन छह फ़ीट की दूरी की, 

समय की मांग पे इस पल जो सबसे जरूरी थी

इस नाकाम व्यवस्था को छिपाने में थी सरकार तत्पर, 

कतार में लगे हुए लोग चल पड़े थे राम भरोसे होकर।


देश के हर कोने में दिखी ऐसी लम्बी कतार,

इसे कई देशवासियों ने किया इस नाजुक पल में स्वीकार

कितनों को मिला टीका, तो कितनी को ना मिला ये उपचार,

किसी को मिली पल भर की खुशी

तो कितनों को मिला निराशा का उपहार।


दोस्तों, ना दिख रही लोगों के

इस पीड़ा के खत्म होने वाले आसार ,

चाहे मिले ना मिले इस रोग से छुटकारा

लेकिन हो जायेंगे इस कतार से बीमार।


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