महाभारत और मैं
महाभारत और मैं
असमंजस में हूँ पड़ा,
मैं दोराहे पर हूँ खड़ा,
है कौन सही है कौन गलत,
कब तक रहूँ, मैं धीर धरा।
है पीर भरी गहरी भीतर,
हूँ टूट रहा अंदर अंदर,
न हो जाए सब तितर बितर
ये ज्वालामुखी जो फूट पड़ा।
मैं महा रण में हूँ खड़ा,
महाभारत के अर्जुन सा,
दोनो ओर है प्रिय मेरे,
तीर प्रत्यंचा पर है चढ़ा।
हे गिरधारी चक्रधर,
साहस देने आजाओ न,
है क्या सही, है क्या गलत,
गीता ज्ञान ज़रा दे जाओ न।
हूँ असहाय मैं निर्बल सा,
कैसे अपनों को हारूँ मैं,
है अंततः ये हार मेरी,
कोई राह मुझे दिखलाओ न।
मैं हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़ा
असमंजस में हूँ पड़ा,
मैं दोराहे पर हूँ खड़ा,
कब तक रहूँ मैं धीर धरा।