कैसे बाटोगे इंसान
कैसे बाटोगे इंसान
सन 1947 में ,
हुआ था एक एलान,
मुल्क बटेगा दो हिस्सों में
एक होगा हिंदुस्तान
दूजा होगा पाकिस्तान।
परेशान थे बढ़े-बूढ़े
हैरान थे नादान
क्यों हुआ है बटवारा ये
सब थे इससे अनजान
ईद दीवाली थी साथ मनाई
साथ खाये थे पकवान
गंगा जमुना की तहजीब थी
एक थे अल्लाह और भगवान
उर्दू थी मौसी प्यारी
और हिंदी ख़ालाजान
बाट तो दोगे हिन्दू-मुस्लिम
कैसे बाटोगे इंसान।
खून से होली खेली गई
लाशों से जली लोहड़ी की आग
सतलुज रावी झेलम को भी
हमने फिर बाट दिया
दो मुल्कों के बीच
हमने लकीरों को काट दिया
रिश्तों को किया खत्म
इंसानियत को मार दिया
हिन्दू मुस्लिम कहते कहते
मानवता को बाट दिया।
मार कर इस दुश्मनी को
क्यों हम एक नहीं होते
धमाकों की आवाज़ों से
दोनों ही मुल्क है रोते
इस दुश्मनी को खुद से दूर
चल दफना दे कही
और करे एक नई शुरुआत
फैला कर शांति और अमन
दोस्ती का बढ़ाये हाथ
भाईचारे का दे पैगाम।
याद तो तुझे भी आती होगी
तो क्यों बन रहा है अनजान
तू खिला दे बिरयानी तेरी
हम खिलाये बनारसी पान
और दिखा दे शैतानों को
बाट तो दोगे हिन्दू-मुस्लिम
कैसे बाटोगे इंसान ।।
