ज़ुबान नहीं, कान नहीं, आँख नहीं, वो क्यो हार नहीं मान रहा है....? ज़ुबान नहीं, कान नहीं, आँख नहीं, वो क्यो हार नहीं मान रहा है....?
बस काट देना चाहती हूँ इन परम्पराओं की बेड़ियों को बस काट देना चाहती हूँ इन परम्पराओं की बेड़ियों को
माँ तूने मुझे सर्व गुण सम्पन्न बना दिया । इस दुनिया मेंं सर उठा कर चलना सिखा दिया। माँ तूने मुझे सर्व गुण सम्पन्न बना दिया । इस दुनिया मेंं सर उठा कर चलना सिखा ...
आँफिस में आज़ादी मिलती प्रेम -पिटारी जब तब खुलती आँफिस में आज़ादी मिलती प्रेम -पिटारी जब तब खुलती
आधा बियाबान काट लिया आधे स्टेशन पार हो गये आधा बियाबान काट लिया आधे स्टेशन पार हो गये
जब आया उड़ने का वक़्त उसके पर काट दिये जब आया उड़ने का वक़्त उसके पर काट दिये