Manu Sweta
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तोड़ दो सारे बंधनों को
छूने दो मुझे आसमान को
बस काट देना चाहती हूँ
इन परम्पराओं की बेड़ियों को
मेरी हर बात पे पहरा बैठा देते हो
क्यो मुझे विवश कर देते हो
मैं भी उन्मुक्त विचरना चाहती हूँ
धरा के इस ओर से उस छोर तक
ज़िन्दगी
मेरा सफर
एक शाम
चाँद
तेरी यादें
रहगुज़र
हे खग
साँसों की शब