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Ravindra Bhartiya

Tragedy

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Ravindra Bhartiya

Tragedy

क्यों होते है खून खराबे इस जहां में।

क्यों होते है खून खराबे इस जहां में।

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क्यों होते हैं खूून खराबे इस जहां में !

यह जो लहू है इंसान का

इससे होली खेलने की इजाजत 

क्या तुम्हें सरकार ने दी है

या जहां तुम रहते हो वहां नफरत को ज्यादा आजादी है

और प्यार को कहीं काल कोठरी में

रखा जाता है ?

क्यों होते हैं खून खराबे इस जहां में।


दुनिया की नजर नीले आसमां पर है

पर मुझे तो फिक्र इस धरती की है

जो मटमेले रंग से लाल हुई जा रही है

वैसे रंग तो सारे ओढ़ रखे है सबने

किसी ने भगवा, किसीने हरा तो किसीने सफेद

पर रंग इंसानियत का ओढ़ने की कोई हिमाकत नहीं करता,

चारो और फैली नफरत में प्यार कोई नहीं भरता।

क्यों होते हैं खून खराबे इस जहां में !


तीतर बितर होते यह कोरे कागज 

खून की स्याही से रंग जाने को इतने आतुर क्यों है

क्या असर इनपे उन कातिल कलमो का भी है 

जो जुल्म ढाहती रहती है, इन कोरे कागजों पर,

वैसे जिम्मेदार तो वो लेखक भी कम नहीं 

जो नफरत की स्याही इन मासूम कलमों में भरकर 

उन नादान कागजों की निर्दय हत्या करवा देते है,

जवाब कहीं सारे है, फिर भी सवाल वहीं ठहरा हुआ है 

आखिर क्यों होते है खून खराबे इस जहां में !


आपसी रंजिश का शिकार यहां ना सिर्फ इंसान है

बल्कि वो सूरज भी है ,जो सबको रोशन करता है

उसे भी बादलों और आसमां की साजिशों ने

कहीं बार छिपाया है

दोष अपना यहां कौन बताएगा 

जब हवा ने भी फूलों का कतल कर 

हर बार खुद को निर्दोष दिखाया है 

कोई अपनों का कातिल है,

तो कोई कीसिके सपनो का कातिल है 

वैसे तो कातिल है हर कोई यहां ,

फिर भी ना जाने सब निर्दोष क्यों है ?


कतल कभी इंसानों का तो कभी इंसानियत का होता है

ख़ामोश सारी कायनात हो जाती है

शोर चारो ओर हैवानियत का होता है,

कोई बेदाग नहीं है, सब रक्तरंजित है इस जहां में

जवाब कई सारे है, सवाल फिर भी वही है

क्यों होते हैं खून खराबे इस जहां में !


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